गांवों व मुहल्लों को पॉलीथिन मुक्त करने के अभियान को गति नहीं मिल पा रही है। विवाह, तिलक आदि उत्सव शुरू हो गए हैं। इन समारोहों में प्लास्टिक के उत्पादों का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। जबकि डीएम ने जिले के 1000 गांवों को पॉलीथिन से शत प्रतिशत मुक्त करने का निर्देश अधिकारियों को दिया है। न कहीं जागरूकता कार्यक्रम दिख रहा है और न ही कार्रवाई।
बीते साल सरकार ने प्रदेश में पॉलीथिन पर प्रतिबंध लगा दिया था। तीन चरणों में लगे प्रतिबंध में हर तरह के पॉलीथिन इस्तेमाल पर रोक है। थर्माकोल और प्लास्टिक के उत्पाद भी प्रतिबंधित हैं। प्रशासन व सामाजिक संगठनों की ओर से पॉलीथिन के दुष्प्रभाओं के प्रति आमजनों में चेतना लाने की कोई पहल नहीं हुई है। शहर से लेकर गांव तक लोग पॉलीथिन का धड़ल्ले से प्रयोग कर रहे हैं।
विदेश्वरीगंज में अन्न देने वाली मिट्टी पर लोग जहर परोस रहे हैं। खेतों में थर्माकोल की प्लेट व डिस्पोजेबल ग्लास बड़े पैमाने पर प्रयोग के बाद डाली जा रही है। केएनआइ स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक सीके त्रिपाठी ने कहा कि थर्माकोल में लगे रसायन से मिट्टी की उर्वरता कम होती है। इसके निर्माण में प्रयुक्त होने वाले लेड, मरकरी, आयरन व एल्युमिनियम खेत के लिए खतरनाक हैं। भूगोलविद संदीप द्विवेदी ने कहा कि थर्माकोल बायोडिग्रेडेबल नहीं है। इसके छोटे टुकड़े मिट्टी, वायु व जल को प्रदूषित करते हैं।
सिर्फ तीन क्विंटल हुई बरामदगी
एक वर्ष के अभियान के बाद जिम्मेदार सिर्फ 1.79 लाख जुर्माना वसूल सके हैं। शहर से मात्र तीन क्विंटल पॉलीथिन तो नगर पंचायतों में बीते छह माह में बरामदगी शून्य रही है।
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पॉलीथिन न प्रयोग करने की उद्घोषणा नियमित अंतराल पर कराई जाती है। छापे की कार्रवाई को तेज किया जाएगा। पार्टियों में भी इसका उपयोग न हो सके इस बाबत प्रभावी कदम उठाए जाएंगे।